महिलाओं को सशक्त करती लोक कलाएं : एक अद्ध्यन
DOI:
https://doi.org/10.1366/4stgkf10Abstract
19वीं सदी में नारी आंदोलन की शुरुआत हुई और इसी के साथ महिला सशक्तिकरण की अवधारणा सामने आई। नारीवाद का महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि इस पितृ सत्तात्मक समाज में नारी को हीन दर्जा प्राप्त है। नारी आंदोलन किसी पुरुष का नहीं बल्कि पितृ सत्तात्मक विचार का विरोध करता है । यह आंदोलन मानता है कि नारी को पुरुष के बराबर अधिकार व अवसर मिले। कुछ ईसाई मिशनरियों के द्वारा भी महिला शिक्षा पर बल दिया जाने लगा और स्वतंत्रता के बाद सरकार ने भी इस तरफ ध्यान देना शुरू किया और महिलाओं की स्थिति में सुधार होना शुरू हुआ. इसी के साथ भारत सरकार के द्वारा कई कानून पास किए गए जिससे कि महिला सशक्तिकरण को बल मिले और इसका सबसे अच्छा उदाहरण है "श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़" यह पहली संस्था थी जिसे महिलाओं के द्वारा बनाया ,चलाया व बेचा गया । कहा जाता है कि महिलाएं और लोक कलाएं एक दूसरे की पूरक है। "भारत में जनसंचार" किताब में केवल जे कुमार लिखते हैं