डाॅ0 भीमराव अंबेडकर का नारी के संदर्भ में दृष्टिकोण
DOI:
https://doi.org/10.1366/x4w2qr78Abstract
मातृ-सत्तात्मक समाज व्यवस्था में पुरुष, स्त्रियों पर निर्भर अथवा उनके अधीन थे। प्रजनन विशिष्टता के कारण स्त्री का समय और शक्ति क्षीण होने व प्रगति की प्रक्रिया में बाधा आ जाने के कारण वह उन्नति की स्पर्धा में पिछड़ती गई। कालांतर में वह पुरुष सत्ता के अधीन हो गई। यूरोप में जहाँ-जहाँ समाजवादी प्रक्रिया में स्त्रियों की सहभागिता बनी रही, वहाँ वह पुरुषसत्ता के अधीन हो गई। यूरोप में जहाँ-जहाँ समाजवादी क्रांतियाँ हुई या औद्योगिक व सामाजिक विकास प्रक्रिया में स्त्रियों की सहभागिता बनी रही, वहाँ वह पुरुष के साथ बराबर आगे बढ़ी। हिन्दुस्तान में पुरुषों के साथ बराबर आने वाली महिलाओं की संख्या नगण्य रही। जो स्त्रियाँ आगे बढ़ी वे वर्ग दृष्टि से पूंजीपतियों की स्त्रियाँ रही। दलित स्त्री की दशा तुलनात्मक दृष्टि से आज भी सर्वाधिक शोचनीय है।