पर्यावरण संरक्षण के विमर्श में सतत विकास एवं भारतीय संस्कृति की प्रासंगिकता

Authors

  • दिनेश कुमार  and डाॅ0 अपर्णा जोशी  Author

DOI:

https://doi.org/10.1366/qgfbdx66

Abstract

 भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण ओैर सतत विकास का चिंतन पग-पग पर मिलता है। भरतीय मनिषियों ने प्रकृति, जीव जन्तुओ, पशु-पक्षियों आदि को आध्यात्मिकता प्रदान करके सनातम धर्म ओर भारतीय संस्कृति से पर्यावरण को अभिन्न रूप से जोड दिया है। भरतीय संस्कृति और सनातन धर्म का विकास प्रकृति एवं उसकी शक्तियों से प्रभावित है। जिसके परिणमस्वरूप प्राचिनकाल से ही पर्यावरण और उसके संरक्षण का चिन्तन भारतीय मनिषियों ने किया है,तथा इसका प्रभाव भारतीय संस्कृतिक जीवन में स्थायी रूप से समाहित रहा है। अतःहम देखते है कि पर्यावरण संरक्षण, सतत विकास और भारतीय संस्कृति न केवल एक दूसरे के पूरक है बल्कि तीनो की पृथक संकल्पना भी एक अधुरेपन का एहसास कराती है।

Published

2006-2025

Issue

Section

Articles

How to Cite

पर्यावरण संरक्षण के विमर्श में सतत विकास एवं भारतीय संस्कृति की प्रासंगिकता. (2025). Leadership, Education, Personality: An Interdisciplinary Journal, ISSN: 2524-6178, 19(1), 1010-1018. https://doi.org/10.1366/qgfbdx66